संघवाद की उभरती प्रवृत्तियां न्यू मीडिया के संदर्भ में एक अध्ययन
Abstract
संविधान के प्रथम अनुच्छेद में भारत को ‘राज्यों का संघ‘ कहा गया है। संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप के अनुसार, शाब्दिक दृष्टि से 'केंद्र' एक वृत्त के मध्य में एक बिंदु को इंगित करता है, जबकि 'संघ' संपूर्ण वृत्त है। संविधान सभा के सदस्य संविधान में 'केंद्र' या 'केंद्र सरकार' शब्द का प्रयोग न करने के लिये बहुत सतर्क थे, क्योंकि उनका उद्देश्य एक इकाई में शक्तियों के केंद्रीकरण की प्रवृत्ति को दूर रखना था।
लोकतंत्र की विकास यात्रा में संघ-राज्य संबंधों में नवीन प्रवृत्तियों का जन्म हुआ है, जो कि संविधान निर्माताओं की मूल मान्यताओं से दूर प्रतीत होती है। जीएसटी के माध्यम से कर संग्रह की एकीकृत प्रणाली ने राज्यों को वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संघ पर निर्भर बनाया है, न्यू मीडिया मंचों पर संघ द्वारा राज्यों को जीएसटी भुगतान में देरी की खबरे अक्सर प्रकाश में आती है। कोरोना काल में जहां संघ ने नीतियों के निर्माण और निर्धारण में आधिपत्य स्थापित किया तो वहीं राज्य ऑक्सीजन संकट के समय अपने स्वास्थ्य संसाधनों की जरूरतों के लिए केंद्र पर निर्भर हो गए थे। यह स्थिति उस समय सार्वजनिक हुई जब राज्यों के मुख्यमंत्रियों की प्रधानमंत्री के साथ वर्चुअल बैठक को दिल्ली के मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर लाइव शेयर कर दिया। संसद संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत कृषि उपज एवं बाज़ारों के संबंध में एक कानून नहीं बना सकती है क्योंकि कृषि एवं बाज़ार राज्य के विषय हैं। किंतु कृषि कानून के समय इसका उल्लंघन एवं राज्यों द्वारा विरोध स्पष्ट रूप से देखने में आया है। 'हैडलाइन मैनेजमेंट' के माध्यम से विरोध को समर्थन के रूप में प्रदर्शित करने के प्रयास की परंपरा इसी दौर की देन है। संघ द्वारा नियुक्त राज्यपाल की भूमिका विशेषकर ऐसे राज्य जहां दूसरे दलों की सरकारें है में संदेहास्पद रही है। मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों में जनता द्वारा निर्मित सरकारों का दल बदल के माध्यम से सत्ता परिवर्तन इसी दौर की घटनाएं है। दिल्ली, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, झारखंड आदि राज्यों में केंद्रीय जांच एजेंसी की भूमिकाओं ने निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए है। इस शोध पत्र में न्यू मीडिया के संदर्भ में संघवाद की उभरती प्रवृत्तियों का वर्णन किया गया है।
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Copyright (c) 2023 Saurabh Jain
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